जिस दिन मेरे घर
एक चिड़िया
आई पंख फुलाए।
मैंने देखा वह दिन
मेरे मन का था।
भूल गई थीं
सभी झंझटें
लिखी गई थी सिर्फ़ राग-मय
मीठी-मीठी घर-गाथा।
मुझे लगा यह दिवस
सुरों में
मुझको गाए।
हर कश्मीरी-क्षण मुझमें
जो डरा-डरा था।
अपने पंखों
लाल गुलों का बाग खिलाए
अब तक जो मेरी आँखों में
नुचा-मरा था।
मेरा आज
तुम्हारे कल की
भोर जगाए।
Monday, March 24, 2014
एक चिड़िया आई / अनूप अशेष
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