बात अब जब भी चलेगी तोप की तलवार की I
खुद-ब-खुद खुलने लगेगी फ़र्द भ्रष्टाचार की II
कल पुलिस की फायरिंग में सारे आदम बच रहे
लाश एक हिन्दू की निकली दूसरी सरदार की I
जंगे-आज़ादी का चर्चा बंद होना चाहिए
दौरे-देरीना था वो जब क़द्र थी किरदार की I
अब हमारा मुल्क हिस्सा बन चुका है ग्लोब का
ज़िक्र कर हमबिस्तरी का बात मत कर प्यार की I
अपनी क़िस्मत में बहस में सुर्ख़रू होना न था
जिसकी लाठी बहस उसकी वो तो थी ज़रदार की I
सोज़ क्या करना है रहकर ऐसी महफ़िल में जहां
ज़िक्रे-क़ातिल है न कोई बात कू-ए-यार की II
Friday, October 24, 2014
बात अब जब भी चलेगी तोप की तलवार की / कांतिमोहन 'सोज़'
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