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Wednesday, October 29, 2014

मेरा हृदय / अरुणा राय

उसकी निगाहें
उसके चेहरे पर खिची
स्मित-मुस्कान
उसकी चंचलता
मुझे
स्थिर कर रही थी

मेरी आँखें
झुकी जा रही थीं
और मेरा हृदय
खोल रहा था
ख़ुद को...

मेरी चुप्पी
बज रही थी
उसके भीतर
जिसके शोर में
ढूंढ रहा था वह
धड़कनों को अपनी।

अरुणा राय

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