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Tuesday, October 28, 2014

इज़्हार / फ़राज़

   इज़्हार[1]

पत्थर की तरह अगर मैं चुप रहूँ
तो ये न समझ कि मेरी हस्ती[2]
बेग़ान-ए-शोल-ए-वफ़ा[3] है
तहक़ीर[4] से यूँ न देख मुझको
ऐ संगतराश[5]!
 तेरा तेशा[6]
मुम्किन[7] है कि ज़र्बे-अव्वली[8] से
पहचान सके कि मेरे दिल में
जो आग तेरे लिए दबी है
वो आग ही मेरी ज़िंदगी है

अहमद फ़राज़

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