इज़्हार[1]
पत्थर की तरह अगर मैं चुप रहूँ
तो ये न समझ कि मेरी हस्ती[2]
बेग़ान-ए-शोल-ए-वफ़ा[3] है
तहक़ीर[4] से यूँ न देख मुझको
ऐ संगतराश[5]!
तेरा तेशा[6]
मुम्किन[7] है कि ज़र्बे-अव्वली[8] से
पहचान सके कि मेरे दिल में
जो आग तेरे लिए दबी है
वो आग ही मेरी ज़िंदगी है
0 comments :
Post a Comment