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Sunday, October 26, 2014

बसंत के बारे में कविता / अनुज लुगुन

बसंत के बारे में कविता लिखने के लिए
एक कवि भँवरे की सवारी पर चढ़ा
और वह धम्म से गिर पड़ा,

एक कवि अपनी प्रेमिका की गोद में लेट कर
मौसम का स्वाद ले रहा था
और उसकी कविता स्वादहीन हो गई
उसकी कविता के पात्र और चरित्र मरे हुए पाए गए
उसकी भाषा जिसके माध्यम से वह
सबसे अच्छी कविता लिखने का दावा करता था
उसकी जुबान को लकवा हो गया,

बसंत के बारे में कविता लिखने से डरता हूँ कि
कहीं कोई भँवरा मेरे गीतों पर रीझ ना जाय
पपीहे भूल ना जाएँ
बाज के हमलों से बचने,
सबसे बुरे समय में
सबसे खुशनुमा और रंगों से सराबोर मौसम पर
कविता लिखते हुए डरता हूँ
अपनी भाषा और शब्दों के दिवालिया हो जाने से,

बसंत के बारे में
कविता लिखने से पहले
अपने बारे में सोचता हूँ
और पाता हूँ अपनी बहन को
बंदूक की नोंक से आत्मा के जख्म सीते हुए
उसके पास ही होती है एक उदास और ठहरी हुई नदी
जिसकी आँसुओं में जलमग्न होते हैं
हरवैये बैल और मुर्गियों के अंडे
मैं सुनता हूँ
अपने बच्चों और मवेशियों की डूबती हुई चीख
और वहीं देखता हूँ
अपने ही देश के दूसरे हिस्से के नागरिकों को
पिकनिक मनाते, जश्न मनाते और फोटो खिंचवाते हुए,
तब मेरी धरती और मेरे लोगों का खून
मेरी कलम की निब से बहने लगता है
मैं विद्रोह करता हुआ पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी पर पहुँच कर
पेड़ों से कहता हूँ कि विदा करो पतझड़ को
अब और देर नहीं
ले आओ मेरी माँ की आँखों में हँसी,

पेड़ मेरी बात को गौर से सुनते हैं और
ले आते हैं अपनी कोमल नई डालियों पर
छोटी-छोटी चिड़ियों और फूलों के गीत
जंगल में घुलने लगती है महुवाई गंध
गिलहरी नृत्य करते हुए
नेवता देती है पंडुकों को भी नृत्य करने के लिए
और पंडुक संकोचवश केवल गीत ही गा पाते हैं,
तब भी मैं लिख नहीं पाता हूँ
उनकी प्रशंसा में कोई कविता
बस उन्हें शुक्रिया कहता हूँ कि उनके बीच
अब भी हमारी पहचान बाकी है
और वे हमें हमारी भाषा से पहचानते हैं,
बसंत के देश में

बसंत के दिनों में
बसंत के बारे में कविता ना लिखना अपराध है
जैसे किसी देश में रहते हुए
उस देश के राजा के मिजाज की कविता न लिखना|
और तब मैं कवि नहीं अपराधी होता हूँ
जो बूढी माँ की आँखों में
डूबते अपने गाँव को बचाने के लिए
समुद्र की पागल लहरों से टकरा जाता हूँ,
बसंत के बारे में कविता लिखने बैठा मैं

बसंत के बारे में नहीं
अपने बारे में लिखता हूँ
और कविता के शब्द जेल की अँधेरी कोठरियों को तोड़ते हैं
उसके अंदर कैद पतझड़ को विदा करने के लिए।

अनुज लुगुन

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