न ये तूफ़ान ही अपने कभी तेवर बदलते हैं
न इनके ख़ौफ़ से अपना कभी हम घर बदलते हैं.
न मन में ख़ौफ़ शीशों के न पश्चाताप में पत्थर,
न शीशे ही बदलते हैं, न ये पत्थर बदलते हैं.
समझ में ये नहीं आता, मंज़र बदलते हैं.
अजी इन टोटकों से क्या किसी को नीद आती है,
कभी तकिया बदलते हैं, कभी चादर बदलते हैं.
Wednesday, October 29, 2014
न ये तूफ़ान ही अपने कभी तेवर बदलते हैं / अशोक रावत
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