पत्थरों के पास घर के आदिम अनुभव हैं
अपनी दीवारों पर सजा ली है उसने मनुष्यों की यह सभ्यता
अब भी वह हर एक घर में है
हर घर एक गुफ़ा है
पत्थरों की मुलायम और नर्म छाँह में
खिले हैं संततियों के फूलों जैसे होंठ
पत्थरों के पास आरक्त तलवों की स्मृतियाँ हैं
पत्थरों ने अपनी गोद में बिठाया है बाल सँवारती सुन्दरियों को
पत्थर की शैया पर पूर्वजों की भर आँख रातें हैं
पत्थर सीमेंट के निराकार में सामने था
कोई इस तरह भी अपने को मिटा सकता है
कि उसका होना भी अँगुलियों से सरक जाए ।
Monday, October 27, 2014
घर-4 / अरुण देव
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