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Thursday, October 30, 2014

काली काली घटा देखकर / कैलाश गौतम

काली -काली घटा देखकर
जी ललचाता है |
लौट चलो घर पंछी
जोड़ा ताल बुलाता है |

सोंधी -सोंधी
गंध खेत की
हवा बाँटती है
सीधी सादी राह
बीच से
नदी काटती है
गहराता है रंग और
मौसम लहराता है |

कैसे -कैसे
दृश्य नाचने लगे
दिशाओं में
मेरी प्यास
हमेशा चातक रही
घटाओं में
बींध रहा है गीत प्यार का
कैसा नाता है
सन्नाटे में
आंगन की बिरवाई
टीस रही
मीठी -मीठी छुवन
और
अमराई टीस रही
पागल को जैसे कोई
पागल समझाता है |

कैलाश गौतम

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