मैं चाहती थी जी भर देखना तुम्हें
सोचा, समझ जाओगे
बिना कहे मन की बात
छोटे से छोटा पल
जो बीता तुम्हारे साथ
याद कर किया
लम्बा इंतज़ार
तुम आओ तो बता सकूँ
कि, बुने कुछ सपने तुम्हें लेकर
पर हमेशा मिले तुम हमेशा
किसी न किसी उधेड़बुन में
जुगाड़ करते कुछ न कुछ
और मैं सोचती रही
शायद अब हो जाओ फ़ुर्सत में
तो देख सकूँ
तुम्हें जी भर ।
Tuesday, October 28, 2014
जी भर / अर्चना भैंसारे
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