अब खोलो स्कूल कि,
शिक्षा भी तो बिकती है
भवन-पार्क 'गण वेश’
आदि सब सुन्दर भव्य बनाओ,
बच्चो में सपने बसते हैं
उनको तुरत भुनाओ,
वस्तु वही बिकती है जो कि
अक्सर दिखती है
गुणवत्ता से भले मुरौव्वत
नहीं दिखावट से,
विज्ञापन की नाव तैरती
शब्द सजावट से,
गीली लकड़ी गर्म आँच में
भी तो सिंकती है
बेकारों की फौज बड़ी है
उनमें सेंध लगाओ,
भूख बड़ी है हर ’डिग्री’ से
इसका बोध कराओ,
शोषण की पटकथा सदा ही
पूँजी लिखती है।
Thursday, October 30, 2014
अब खोलो स्कूल / ओम धीरज
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