जब ईमानदार को
समझा जाता हो बेवकूफ़
समयनिष्ठ को डरपोक,
कर्तव्यनिष्ठ को गदहा,
तब कविता लिखना-पढ़ना-सुनना
और सुनाना भी
है बहुत मुश्किल काम,
बहुत मुश्किल काम है
कविता करना,
फिर भी कविता हो जाती है
ख़ुद-ब-ख़ुद
जीवन-संघर्षों को झेलते हुए ।
जब ईमानदार को
समझा जाता हो बेवकूफ़
समयनिष्ठ को डरपोक,
कर्तव्यनिष्ठ को गदहा,
तब कविता लिखना-पढ़ना-सुनना
और सुनाना भी
है बहुत मुश्किल काम,
बहुत मुश्किल काम है
कविता करना,
फिर भी कविता हो जाती है
ख़ुद-ब-ख़ुद
जीवन-संघर्षों को झेलते हुए ।
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