घर घर आपस में दुश्मनी भी है
बस खचा-खच भी हुई भी है
एक लम्हे के वास्ते ही सही
काले बादल में रौशनी भी है
नींद को लोग मौत कहते हैं
ख़्वाब का नाम ज़िंदगी भी है
रास्ता काटना हुनर तेरा
वर्ना आवाज़ टूटती भी है
ख़ूबियों से है पाक मेरी ज़ात
मेरे ऐबों में शाइरी भी है
Monday, October 27, 2014
घर घर आपस में दुश्मनी भी है / अहसन यूसुफ़ ज़ई
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