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Thursday, October 16, 2014

चक्रान्त शिला - 23 / अज्ञेय

व्यथा सब की, निविडतम एकान्त मेरा।

कलुष सब का स्वेच्छया आहूत;
सद्यधौत अन्तःपूत बलि मेरी।
ध्वान्त इस अनसुलझ संसृति के
सकल दौर्बल्य का, शक्ति तेरे तीक्ष्णतम, निर्मम, अमोघ
प्रकाश-सायक की।
अज्ञेय

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