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Thursday, April 10, 2014

ऐसी एक कविता / अरुण आदित्य

जिसे टेडी बियर की तरह उछाल-उछाल
खेल सके एक बच्चा
जिसे बच्चे की किलकारी समझ
हुलस उठे एक माँ

जो प्रतीक्षालय की किसी पुरानी काठ-बेंच की तरह
इतनी खुरदुरी हो, इतनी धूलभरी
कि उसे गमछे से पोछ निःसंकोच
दो घड़ी पीठ टिका सके कोई लस्त बूढ़ा पथिक

जो रणक्षेत्र में घायल सैनिक को याद आए
माँ के दुलार या प्रेयसी के प्यार की तरह
जो योद्ध की तलवार की तरह हो धारदार
जो धार पर रखी हुई गर्दन की तरह हो
ख़ून से सनी, फिर भी तनी
पता नहीं कब लिख सकूँगा ऐसी एक कविता
आज तक तो नहीं बनी ।

अरुण आदित्य

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