एक ग़ज़ल
इक मुसाफिर ने कारवां पाया।
कातिलों को भी मेहरबां पाया.
मेरे किरदार की शफाक़त ने-
हर कदम एक इम्तिहाँ पाया।
जुस्तजू में मिरी वो ताक़त है-
तुझको चाहा जहाँ-वहाँ पाया।
वो जो कहते हैं-मिरे साथ चलो
उनके क़दमों को बेनिशां पाया।
इक सितारा निशात का टूटा-
दर्द में हमने आसमां पाया.
Thursday, April 3, 2014
इक मुसाफिर ने कारवां पाया / आनंद कृष्ण
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