बरसे मेघ भरी दोपहर, क्षण भर बूंदें आईं
उमस मिटी धरती की साँसे भीतर तक ठंडाईं
आँखें खोलें बीज उमग कर गगन निहारें
क्या बद्दल तक जा पाएंगे पात हमारे?
बरसे मेघ भरी दोपहर, क्षण भर बूंदें आईं
उमस मिटी धरती की साँसे भीतर तक ठंडाईं
आँखें खोलें बीज उमग कर गगन निहारें
क्या बद्दल तक जा पाएंगे पात हमारे?
0 comments :
Post a Comment