हे अनन्तता के अहंकार !
कितनी तुच्छ है
तुम्हारी सिन्धुता ?
तुम तो वही हो न
जिसे पी लिया था
कुम्भज अगस्त ने
चुल्लू में भरकर
और कुल्ला कर दिया था जगह-जगह
विन्ध्याटवी में
उन गड्ढों में
जाकर देखो
अपना अक्स
नदी के लिए
अब
वापस जाना
सम्भव नहीं
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