सृष्टि के विशाल होने से
क्या अंतर पड़ता है
मेरी तो बालकनी है
पूरा विश्व घूमता है
आँख की धुरी तक
हलचल जीवन की
कोलाहल जीवन में
मेरा तो अपना हृदय है
जो घूमता है चक्र की तरह
वहीं घूमना मेरी हलचल है
आवाज़
शोर उस चक्र का
मेरे लिए कोलाहल है
समय जो बहने वाला
नदी की तरह
रूका हुआ है मेरे लिए
चेतना की झनझनाहट
असीम दुख का केंद्र बिन्दु
अँधेरा
निर्जीव विस्तार
निस्त्ब्ध्ता
स्वरहीन
रुकना, विराम नहीं
गति की थकान को मिटाना है
अतीत और भविष्य
वर्तमान के बिन्दु की नोक पर
बिन्दु एक दुख
दुख एक स्थिरता
झटका लगताई है
केमरे के लेंस जैसा
विस्फोट होता है
आकाश में धुआँ ही धुआँ
धुएँ की बाहें
समेटती हैं चिंगारियाँ
चिंगारियाँ रूक गयी है
भरा है उसमे
असंतोष
अतृप्ति
आशंका
एक बिन्दु चमकता है
चमन में उमंग, जीवन में सब कुछ है
भावना है, और है एक
वास्तविकता
प्रश्न चिह्न बन कर
Wednesday, March 26, 2014
एक डरपोक औरत का प्रश्न / अनीता कपूर
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