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Sunday, March 2, 2014

दिल पे कोई नशा न तारी हो / कविता किरण

दिल पे कोई नशा न तारी हो,
रूह तक होश में हमारी हो।

चंद फकीरों के संग यारी हो,
मुट्ठी में कायनात सारी हो।

हैं सभी हुस्न की इबादत में,
कौन अख़लाक़ का पुजारी हो।

ज़ख्म भी दे लगाए मरहम भी,
इस कदर नर्म-दिल शिकारी हो।

चाहती हूँ मेरे ख़ुदा मुझ पर
बस तेरे नाम की खुमारी हो।

मौत आए तो बेझिझक चल दें
इतनी पुख़्ता 'किरण' तयारी हो।

कविता "किरण"

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