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Wednesday, March 5, 2014

गौतम की प्रतीक्षा ? / अपर्णा भटनागर

कुछ तितलियाँ
फूलों की तलहटी में तैरती
कपड़े की गुथी गुड़ियाँ
कपास की धुनी बर्फ़
उड़ते बिनौले
और पीछे भागता बचपन
 
मिट्टी की सौंध में रमी लाल बीर बहूटियाँ
मेमनों के गले में झूलते हाथ
नदी की छार से बीन-बीन कर गीतों को उछालता सरल नेह
सूखे पत्तों की खड़-खड़ में
अचानक बसंत की लुका-छिपी
और फिर बसंत-सा ही बड़ा हो जाना -
 
तब दीखना चारों ओर लगी कँटीली बाड़ का
कई अवसादों का निवेश
परित्यक्त देहर पर उलझे बंदनवार
 
और माँ की देह से चिपकी अहिल्या
पत्थर -सी चमकती आँखों में
एक पथ खोजती
कठफोड़वे की तरह टुकटुक करती
पीड़ा की सुधियों को फोड़ रही है
काष्ठ के कोटर -सी
माँ , राम मिलेगा तो सौंप दूँगी तुझे

अपर्णा भटनागर

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