मुझ को शिकस्त-ए-दिल का मज़ा याद आ गया
तुम क्यों उदास हो गए क्या याद आ गया
कहने को ज़िन्दगी थी बहुत मुख़्तसर मगर
कुछ यूँ बसर हुई कि ख़ुदा याद आ गया
वाइज़ सलाम ले कि चला मैकदे को मैं
फिरदौस-ए-गुमशुदा का पता याद आ गया
बरसे बगैर ही जो घटा घिर के खुल गई
एक बेवफ़ा का अहद-ए-वफ़ा याद आ गया
मांगेंगे अब दुआ के उसे भूल जाएँ हम
लेकिन जो वो बवक़्त-ऐ-दुआ याद आ गया
हैरत है तुम को देख के मस्जिद में ऐ 'ख़ुमार'
क्या बात हो गई जो ख़ुदा याद आ गया
Friday, October 25, 2013
मुझ को शिकस्ते दिल का मज़ा याद आ गया / ख़ुमार बाराबंकवी
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