ख़राब लोगों से भी रस्म व राह रखते थे
पुराने लोग ग़ज़ब की निगाह रखते थे
ये और बात कि करते थे न गुनाह मगर
गुनाहगारों से मिलने की चाह रखते थे
वह बदशाह भी साँसों की जंग हार गये
जो अपने गिर्द हमेशा सिपाह रखते थे
हमारे शेरों पे होती थी वाह वाह बहुत
हम अपने सीने में जब दर्द-ओ-आह रखते थे
बरहना सर हैं मगर एक वक़्त वो भी था
हम अपने सर पे भी ज़र्रीं कुलाह रखते थे
Saturday, October 26, 2013
ख़राब लोगों से भी रस्म व राह रखते थे / अनवर जलालपुरी
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