शहर कै सुबह बड़ी संगीन,
गांव का भोरु बड़ा रंगीन।
सुरुज आँखी फैलाए ठाढ़,
लखै मनइन कै अदभुद बाढ़,
गली-कूंचा हैं येतने तंग,
हुवां रवि कै है पहुँच अपंग,
सबेरहे हार्न उठे चिल्लाय,
मील का धुवां सरग मंडराय,
जिन्दगी भाग-दौड़ मां लीन,
शहर कै सुबह बड़ी संगीन॥
सुरुज कै लाली परी देखाय,
बिरछ सब झूमि उठे इठलाय,
कोयलिया रागु सुनावै लागि,
बयरिया तपनि बुझावै लागि,
नदी-तट चहकैं पक्षी-वृन्द,
फिरैं सब लोग बड़े स्वच्छंद,
जिन्दगी प्रेम-सुधा मां लीन,
गांव का भोरु बड़ा रंगीन॥
सभ्यता उड़ै पंख फैलाय,
कृत्रिमता अंग-अंग दरसाय,
जहाँ पानी तक म्वाल बिकाय,
प्रदूषित वातावरण देखाय,
जहाँ छल-छंदु मचावै रंग,
प्रकृति ते होय नित हुड़दंग,
फिरै सारा समाजु गमगीन,
शहर कै सुबह बड़ी संगीन॥
किसनवा हर ते धरती फारि,
लाग अमिरुत कै करै फुहार,
हरेरी चूनरि धरती धारि,
किहिसि सब गांवन का सिंगारु,
सुंगन्धै भरिन जंगली लता,
हृदय हुलसायिसि कंचन-प्रभा,
प्रकृति निज सुंदरता मां लीन,
गांव का भोरु बड़ा रंगीन॥
Tuesday, October 29, 2013
शहर कै सुबह बनाम गांव का भोरु / उमेश चौहान
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