अँबुज कँज से सोहत हैँ अरु ,
अरु कँचन कुँभ बने छए हैँ ।
बारे खरे गदकोर महावर ,
पारे लसे अरु मैन छए हैँ ।
ऊँचे उजागर नागर हैँ अरु ,
पीय के चित्त के मित्त भए हैँ ।
हैँ तो नये कुच ये सजनी पर ,
जौँ लौँ नए नहीँ तौँ लौँ नए हैँ ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
Sunday, October 27, 2013
अँबुज कँज से सोहत हैँ अरु / अज्ञात कवि (रीतिकाल)
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