कहें किस से हमारा खो गया क्या
किसी को क्या के हम को हो गया क्या
खुली आँखों नज़र आता नहीं कुछ
हर इक से पूछता हूँ वो गया क्या
मुझे हर बात पर झुटला रही है
ये तुझ बिन ज़िंदगी को हो गया क्या
उदासी राह की कुछ कह रही है
मुसाफ़िर रास्ते में खो गया क्या
ये बस्ती इस क़दर सुनसान कब थी
दिल-ए-शोरीदा थक कर सो गया क्या
चमन-आराई थी जिस गुल का शेवा
मेरी राहों में काँटे बो गया क्या.
Sunday, October 27, 2013
कहें किस से हमारा / 'अख्तर' सईद खान
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment