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Monday, October 28, 2013

काएम है सुरूर-ए-मै-ए-गुलफाम हमारा / कलीम आजिज़

काएम है सुरूर-ए-मै-ए-गुलफाम हमारा
क्या गम है अगर टूट गया जाम हमारा

इतना भी किसी दोस्त का दुश्मन न हो कोई
तकलीफ है उन के लिए आराम हमारा

फूलों से मोहब्बत है तकाज़ा-ए-तबीअत
काँटों से उलझना तो नहीं काम हमारा

भूले से कोई नाम वफा का नहीं लेता
दुनिया को अभी याद है अंजाम हमारा

गैर आ के बने हैं सबब-ए-रौनक-ए-महफिल
अब आप की महफिल में है क्या काम हमारा

मौसम के बदलते ही बदल जाती हैं आँखें
यारान-ए-चमन भूल गए नाम हमारा

कलीम आजिज़

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