मुझमें जादू कोई जगा तो है
मेरी बातों में इक अदा तो है
नज़रें मिलते ही लडखडाया वो
मेरी आँखों में इक नशा तो है
आईने रास आ गये मुझको
कोई मुझ पे भी मर मिटा तो है
धूप की आंच कम हुई तो क्या
सर्दियों का बदन तपा तो है
नाम उसने मेरा शमां रक्खा
इस पिघलने में इक मज़ा तो है
देखकर मुझको कह रहा है वो
दर्दे-दिल की कोई दवा तो है
उसकी हर राह है मेरे घर तक
पास उसके मेरा पता तो है
वो 'किरण' मुझको मुझसे मांगे है
मेरे लब पे भी इक दुआ तो है
Monday, October 28, 2013
मेरी बातों में इक अदा तो है / कविता किरण
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment