सफ़-ए-अव्वाल से फ़क्त एक ही मयक्वार उठा । कितनी सुनासान है तेरी महफ़िल साकी ।। ख़त्म हो जाए न कहीं ख़ुशबू भी फूलों के साथ, यही खुशबू तो है इस बज़्म का हासिल साखी ।
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