पौसाळ जाती बेटी का हाथाँ में,
नतके सौंपूँ छूँ एक पुसप गुलाब को/
सिखाबो चाहूँ छूँ अष्याँ
के धसूळाँ के बीचे र्है’र भी
कष्याँ मुळक्यो जा सकै छै,
अर कष्याँ बाँटी जा सकै छै सौरम।
राजस्थानी कविता का हिंदी अनुवाद
स्कूल जाती हुई बेटी के हाथों में
हर दिन सौपता हूँ एक फूल गुलाब का/
सिखाना चाहता हूँ इस तरह
कि तेज काँटों के बीच रहते हुए भी
किस तरह मुस्कुराया जा सकता है
और किस तरह बाँटी जा सकती है सुगंध।
अनुवाद : स्वयं कवि
Monday, October 20, 2014
सबक / अतुल कनक
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