रिश्तों के बदलते मायने
अब वे अहसास नहीं रहे
बन गये अहम् की पोटली
ठीक अर्थशास्त्र के नियमों की तरह
त्याग की बजाय माँग पर आधारित
हानि और लाभ पर आधारित
शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव
की तरह दरकते रिश्ते
ठीक वैसे ही
जैसे किसी उद्योगपति ने
बेच दी हो घाटे वाली कम्पनी
बिना समझे किसी के मर्म को
वैसे ही टूटते हैं रिश्ते
आज के समाज में
और अहसास पर
हावी होता जाता है अहम् ।
Friday, October 17, 2014
रिश्तों का अर्थशास्त्र / कृष्ण कुमार यादव
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