Pages

Thursday, October 23, 2014

धूप आँगने आई / अवनीश सिंह चौहान

डूबा था इकतारा
मन में
जाने कब से
चाह रहा था
खुलना-खिलना
अपने ढब से
दी झनकार सुनाई

खुलीं खिड़कियाँ
दरवाज़े
जागे परकोटे
चिड़ियाँ छोटीं
तोते मोटे
मिलकर लोटे
दृश्य लगे सुखदाई

महकीं गलियाँ
चहकीं सड़कें
गाजे-बाजे
लोग घरों से
आये बाहर
बनकर राजे
गूँजी फिर शहनाई

अवनीश सिंह चौहान

0 comments :

Post a Comment