ज़र्द बादल मेरी धरती पर उतर जाने को है
सब्ज़ रूत पाले की जद़ में ग़ालिबन आने को है
इब्न-ए-मरियम को सलीबें पर चढ़ाने का जुननू
इब्न-ए-आदम के लहू की धार रूलवाने को है
इश्क़ की गहरी जड़ों को खाद पानी चाहिए
पडे़ यह सब मौसमों में फल फूल लाने को है
उड़ रही हैं वहशी चीख़ें चील कौओं गिद्ध की
पीली आँधी आस्माँ से लाश बरसाने को है
मुत्तहिद हैं सब दरिन्दे नाख़ुनें दातों के साथ
मुन्तशिर हर जानवर पंजों में फँस जाने को है
रँग-कोरों को नज़र आते नहीं सब रँग सात
उनकी ज़िद रँगीं धनक यकरँग रँगवाने को है
मिल के सब सरूज जला लें तो अँधेरा भाग ले
एक इक कर के तो सब पर रात छा जाने को है
बीज जैसे बोये वैसी फ़स्ल काटेगा ‘अनीस’
थूहरों को बोने वाला ज़हर ख़ुद खाने को है
Friday, October 17, 2014
ज़र्द बादल मेरी धरती पर उतर जाने को है / अनीस अंसारी
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