दयार-ए-ग़ैर में कोई जहाँ न अपना हो शदीद कर्ब की घड़ियाँ गुज़ार चुकने पर कुछ इत्तेफ़ाक़ हो ऐसा कि एक शाम कहीं किसी एक ऐसी जगह से हो यूँ ही मेरा गुज़र जहाँ हुजूम-ए-गुरेज़ाँ में तुम नज़र आ जाओ और एक एक को हैरत से देखता रहे
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