यह क्या, भन्ते !
बोधिवृक्ष को खोज रहे तुम
महानगर में
यों यह सच है
बोधिवृक्ष की चर्चा थी कल
सभागार में
रक्त बहा है
इधर रात भर नदी-धार में
घायल पड़ा हुआ है
अंतिम-बचा कबूतर पूजाघर में
सड़क-दर-सड़क
भटक रहे तुम
लोग चकित हैं
सधे हुए जो अस्त्र-शस्त्र
वे अभिमंत्रित हैं
उस कोने में
बच्चे बैठे भूखे-प्यासे/डूबे डर में
वही तो नहीं बोधिवृक्ष
जो ठूँठ खड़ा है
उस पर ही तो
महाअसुर का नाम जड़ा है
उसके नीचे
जलसे होंगे नरमेधों के
इस पतझर में
Saturday, October 25, 2014
कुछ सुख बचे हैं / कुमार रवींद्र
Subscribe to:
Post Comments
(
Atom
)
0 comments :
Post a Comment