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Saturday, October 25, 2014

सबसे बड़ा आश्चर्य / अनुज लुगुन

सबसे बड़ा आश्चर्य वह नहीं
जिसे हम देखना चाहते हों
और देख नहीं पाते
जैसे देश के सबसे पिछड़े क्षेत्र में बैठकर
देखना चाहते हों
ताजमहल या एफिल टावर।

सबसे बड़ा आश्चर्य वह नहीं
जो अंतरिक्ष से भी दीख पड़े
तिनके की तरह ही सही
जैसे दिखाई पड़ती है चीन की दीवार।

सबसे बड़ा आश्चर्य यह नहीं
कि कितनी कलात्मकता से बनाया गया है
ताजमहल या एफिल टावर।

वे हाथ जो नंगे पैर
आवेशित धूप में
बालू, सीमेंट से काढ़ लेते हैं
ताजमहल की-सी कलात्मकता
या खड़ी कर देते हैं चीन की दीवार
जिनके स्मरण में होता है काम के बाद
रात में उनकी पत्नियों के हाथों
तवे पर इठलाती रोटियाँ
जिसके स्वाद का सीधा संबंध
उनके पेट से होता है
सबसे बड़ा आश्चर्य होता है,
जिसको पाने की जद्दोजहद में
रोज़ ईंटों से दबती हैं अँगुलियाँ
और अँगुलियाँ हैं जो
ईंटों का शुक्रिया अदा करती हैं ।

सबसे बड़ा आश्चर्य होता है रोटी
जो तरसी आँखों के सामने
दूसरों के हाथ खेलती दिखाई देती है
और आँखें केवल देखती रह जाती हैं
जिसके होने मात्र के आभास से
पृथ्वी सम लगती है ग्लोब की तरह
नहीं तो यहाँ भी काँटे हैं
खाईयाँ हैं, ऊबड़-खाबड़

अनुज लुगुन

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