दिल से अपने ख़ुद-ब-ख़ुद कुछ पूछिए मेरे लिए
फ़ैसला अब कीजिए या सोचिए मेरे लिए
फ़िक्र-ए-दुनिया से न जाने आप क्यूँ हैं अश्क-बार
इन मुसलसल आँसुओ को रोकिए मेरे लिए
मैं तो कब से मुंतज़िर हूँ आप के एहसान की
दर्द का आहों से सौदा कीजिए मेरे लिए
आप का लहजा शहद जैसा तरन्नुम-ख़ेज़ है
ख़ामोशी अब तोड़िए और बोलिए मेरे लिए
आप को सब लोग कहते हैं मसीहा ऐ सनम
ज़िंदगी मुझ को भी दे कर देखिये मेरे लिए
Thursday, October 2, 2014
दिल से अपने ख़ुद-ब-ख़ुद कुछ पूछिए / इन्दिरा वर्मा
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