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Saturday, February 22, 2014

वह औरत / उर्मिला शुक्ल


भरी दोपहर में वह
बुन रही है ठंडक
खस के तिनकों को
बांधती आँखें
क्षण भर देखती हैं
तपते सूरज को
फिर सहेजने लगती हैं
खस के बिखरे तिनके
अपनी काया को तपाकर
वह सहेज रही है ठंडक
उनके लिए जो डरते हैं
सूरज की आँच से

उर्मिला शुक्ल

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