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Friday, February 28, 2014

पौधे की किलकारियाँ / अर्चना भैंसारे

सारी रात पिछवाड़े की
ज़मीन कराहती रही
लेती रही करवटें

उसकी चिन्ता में
सोया नहीं घर
होता रहा अंदर-बाहर

और अगले ही दिन
पहले-पहल सूरज की किरणें
दौड़ पड़ी चिड़ियों के सहगान में
जच्चा गातीं

उसकी गोद में मचलते
पौधे की किलकारियाँ सुन...!

अर्चना भैंसारे

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