उसने कब चाहा कि
बन जो गुडिय़ा
और रचे गुडिय़ो का संसार
मन करता है द्रोह
मगर इंसान नहीं
मात्र कठपुतली है
जोर से बंधा जीवन उसका
और बंधन ही जीवन का सार।
उसने कब चाहा कि
बन जो गुडिय़ा
और रचे गुडिय़ो का संसार
मन करता है द्रोह
मगर इंसान नहीं
मात्र कठपुतली है
जोर से बंधा जीवन उसका
और बंधन ही जीवन का सार।
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