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Tuesday, February 25, 2014

ये आँसू बे-सबब जारी नहीं है / कलीम आजिज़

ये आँसू बे-सबब जारी नहीं है
मुझे रोने की बीमारी नहीं है

न पूछो ज़ख्म-हा-ए-दिल का आलम
चमन में ऐसी गुल-कारी नहीं है

बहुत दुश्वार समझाना है गम का
समझ लेने में दुश्वारी नहीं है

गज़ल ही गुनगुनाने दो मुझ को
मिज़ाज-ए-तल्ख-गुफ्तारी नहीं है

चमन में क्यूँ चलूँ काँटों से बच कर
ये आईन-ए-वफादारी नहीं है

वो आएँ कत्ल को जिस रोज चाहें
यहाँ किस रोज़ तैयारी नहीं है

कलीम आजिज़

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