ये आँसू बे-सबब जारी नहीं है
मुझे रोने की बीमारी नहीं है
न पूछो ज़ख्म-हा-ए-दिल का आलम
चमन में ऐसी गुल-कारी नहीं है
बहुत दुश्वार समझाना है गम का
समझ लेने में दुश्वारी नहीं है
गज़ल ही गुनगुनाने दो मुझ को
मिज़ाज-ए-तल्ख-गुफ्तारी नहीं है
चमन में क्यूँ चलूँ काँटों से बच कर
ये आईन-ए-वफादारी नहीं है
वो आएँ कत्ल को जिस रोज चाहें
यहाँ किस रोज़ तैयारी नहीं है
Tuesday, February 25, 2014
ये आँसू बे-सबब जारी नहीं है / कलीम आजिज़
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