Pages

Tuesday, February 25, 2014

हाथ-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’

मेरे हाथ
मेरे कंधों पर थे
फिर भी
लोगों ने
मेरे हाथ ढूँढ़े
क्राँतियों में
भ्राँतियों में
यानी
तमाम अपघटितों में
बेबाक गवाहियाँ
निर्लज्ज पुष्टियों में थी
जबकि मैं
असहाय मौन
दूर खड़ा
दोनों हाथ
मलता रहा ।

ओम पुरोहित ‘कागद’

0 comments :

Post a Comment