Pages

Wednesday, February 26, 2014

रोज़ बढती जा रही इन खाइयों का क्या करें / अखिलेश तिवारी

रोज़ बढती जा रही इन खाइयों का क्या करें
भीड़ में उगती हुई तन्हाइयों का क्या करें

हुक्मरानी हर तरफ बौनों की, उनका ही हजूम
हम ये अपने कद की इन ऊचाइयों का क्या करें

नाज़ तैराकी पे अपनी कम न था हमको मगर
नरगिसी आँखों की उन गहराइयों का क्या करें

अखिलेश तिवारी

0 comments :

Post a Comment