रिश्तों का उपवन इतना वीरान नहीं देखा।
हमने घर के बूढ़ों का अपमान नहीं देखा।
जिनकी बुनियादें ही धन्धों पर आधारित हैं
ऐसे रिश्तों को चढ़ते परवान नहीं देखा।
कोई तुम्हारा कान चुराकर भाग रहा, सुनकर
उसके पीछे भागे ,अपना कान नहीं देखा
दो पल को भी बैरागी कैसे हो पाएगा
उसका मन, जिसने जाकर शमशान नहीं देखा।
दिल से दिल के तार मिलाकर जब यारी कर ली
हमने उसके बाद नफ़ा–नुक़सान नहीं देखा।
Monday, February 24, 2014
रिश्तों का उपवन इतना वीरान नहीं देखा / ओमप्रकाश यती
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