कोई गुल खिलनेवाला है कुहुक रही कोयलिया
कोयल कुहुक रही रे कोयल कुहुक रही I
कारतूस से भरे-भरे दिल जेब-जेब है ख़ाली
खप्पर लेकर नाच रही है सड़क-सड़क पर काली
तूफ़ान मचलने वाला है कुहुक रही कोयलिया I
कोई गुल खिलनेवाला है कुहुक रही कोयलिया
कोयल कुहुक रही रे कोयल कुहुक रही ।।
काँप रहे हैं पीले पत्ते लाल हुई तरुणाई
शाख-शाख पर शोले लहकें दहक रही अमराई
तूफ़ान मचलनेवाला है कुहुक रही कोयलिया I
कोई गुल खिलनेवाला है कुहुक रही कोयलिया
कोयल कुहुक रही रे कोयल कुहुक रही ।।
सहम उठी ज़ालिम की लाठी सिहर गई है गोली
सर से कफ़न बाँधकर निकली मस्तानों की टोली
तूफ़ान मचलनेवाला है कुहुक रही कोयलिया I
कोई गुल खिलनेवाला है कुहुक रही कोयलिया
कोयल कुहुक रही रे कोयल कुहुक रही ।।
रचनाकाल : नवम्बर 1974
Friday, February 28, 2014
बिहार आन्दोलन का गीत / कांतिमोहन 'सोज़'
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