ग़ज़ल गए रहे हैं सवेरे-सवेरे I
वो याद आ रहे हैं सवेरे-सवेरे II
चलो उनपे शब का इजारा तो टूटा
ग़ज़ब ढा रहे हैं सवेरे-सवेरे I
गुलों की न पूछो वो शबनम की सहबा
पिए जा रहे हैं सवेरे-सवेरे I
उठाओ सबू हज़रते शेख देखो
इधर आ रहे हैं सवेरे-सवेरे I
मैं हैरां हूं पागल हुए हैं पखेरू
हंसे जा रहे हैं सवेरे-सवेरे I
ये बादल हैं या मेरी तौबा के दुश्मन
झुके जा रहे हैं सवेरे-सवेरे I
ख़तरनाक है सोज़ की ये ग़ज़ल भी
ये उलझा रहे हैं सवेरे-सवेरे II
Thursday, February 27, 2014
ग़ज़ल गा रहे हैं सवेरे-सवेरे / कांतिमोहन 'सोज़'
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