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Monday, February 24, 2014

माँ का दुःख / ऋतुराज

कितना प्रामाणिक था उसका दुःख
लड़की को दान में देते वक्त
जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो

लड़की अभी सयानी नहीं थी
अभी इतनी भोली सरल थी
कि उसे सुख का आभास होता था
लेकिन दुःख बाँचना नहीं आता था
पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की
कुछ तुकों और लयबद्ध पंक्तियों की

माँ ने कहा पानी में झाँककर
अपने चेहरे में मत रीझना
आग रोटियाँ सेंकने के लिए है
जलने के लिए नहीं
वस्त्र और आभूषण शब्दिक भ्रमों की तरह
बंधन हैं स्त्री-जीवन के

माँ ने कहा लड़की होना
पर लड़की जैसी मत दिखाई देना।

ऋतुराज

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