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Saturday, February 22, 2014

ज़िंदगी की चादर / अलका सिन्हा

ज़िन्दगी को जिया मैंने
इतना चौकस होकर
जैसे कि नींद में भी रहती है सजग
चढ़ती उम्र की लड़की
कि कहीं उसके पैरों से
चादर न उघड़ जाए ।

अलका सिन्हा

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