दिन ठंडा है
आओ, तापें
जरा देर सूरज को चलकर
कमरे में बैठे-बैठे
हो रहे बर्फ हम
सँजो रहे हैं
दुनिया भर के साँसों के गम
बहर देखो
हुआ सुनहरा
धूप सेंककर चिड़िया का घर
ओस-नहाये
खिले फूल को छूकर तितली
अभी-अभी
खिड़की के आगे से है निकली
सँग कबूतरी के
बैठा है
पंख उठाये हुए कबूतर
उधर घास पर ओस पी रही
चपल गिलहरी
देखो, कैसे
धूप पीठ पर उसके ठहरी
चलो
संग उसके हम बाँचें
लिखे जोत के जो हैं आखर
Sunday, February 2, 2014
दिन ठंडा है / कुमार रवींद्र
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