आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं
हम गर्दिश-ए-दौराँ के सताए भी वही हैं
क्या बात है क्यूँ शहर में अब जी नहीं लगता
हालांकि यहाँ अपने पराए भी वही हैं
औराक़-ए-दिल-ओ-जाँ पे जिन्हें तुम ने लिखा है
नग़मात-ए-आलम हम ने सुनाए भी वही है
ऐ जोश-ए-जुनूँ दर्द का आलम भी वही है
ऐ वहशत-ए-जाँ दर्द के साए भी वही हैं
देखा है जिन्हें आह-ब-लब चाक-गिरेबाँ
हर दाग़-ए-आलम दिल में छुपाए भी वही हैं
सौ रंग बिखेरेंगे मोहब्बत के शगूफ़े
‘गुलनार’ चमन में हमंे लाए भी वही हैं
Wednesday, October 2, 2013
आँसू भी वही कर्ब के साए भी वही हैं / 'गुलनार' आफ़रीन
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