आँसूगदी से इश्क-ए-जवाँ को बचाइए
कोई जो मान जाए तो खुद रूठ जाइए
जश्न-ए-सूरूर बाए सनम पर मनाइए
ये कुसूर है तो कुसूर का ईमान लाईए
ये कौन आया है
आधी रात को मयकदे
तौबा ये जानाब-ए-शेख तशरीफ लाईए
काफी है आर्ज़-ए-गम के लिए मुज़्महिल हँसी
रो-रो के इश्क को न तमाशा बनाईए
बेमौत मार डालेंगी ये होश मन्दिया
Wednesday, October 2, 2013
आँसूगदी से इश्क-ए-जवाँ को बचाइए / ख़ुमार बाराबंकवी
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